मुजफ्फरनगर के दो घनिष्ठ मित्र, एम. के. भाटिया और डॉ. सोहराब एक बार फिर अपनी पसंदीदा मिठाई—गाजर का हलवा—का आनंद लेते हुए अपने बचपन की यादों में खो गए। यह सिर्फ एक सामान्य मुलाकात नहीं थी, बल्कि 35 वर्षों से चली आ रही दोस्ती की मिसाल थी, जो समय के हर उतार-चढ़ाव में और मजबूत होती गई।
बचपन के यार, जिंदगीभर के हमसफ़र
एम. के. भाटिया, जो एक सफल उद्यमी और समाजसेवी हैं और डॉ. सोहराब जो चिकित्सा क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं, जीवन में जब भी कोई कठिनाई आई, दोनों ने एक-दूसरे का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। चाहे व्यवसायिक चुनौतियाँ रही हों या व्यक्तिगत जीवन के उतार-चढ़ाव, दोनों मित्रों ने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया और बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे के लिए खड़े रहे।

मुश्किल वक्त में भी साथ
एक सच्चे दोस्त की पहचान मुश्किल समय में ही होती है। जब एम. के. भाटिया अपने शुरुआती दिनों में संघर्ष कर रहे थे, तब डॉ. सोहराब ने हर संभव सहयोग दिया। आज जब दोनों मित्र अपनी जिंदगी की सफल ऊँचाइयों पर हैं, तब भी उनकी दोस्ती उतनी ही ताजा और मजबूत है जितनी कि बचपन में थी। इसी दोस्ती की मिठास को और गहरा करने के लिए वे आज फिर एक साथ बैठे, अपने बचपन की बातें कीं और अपने पसंदीदा गाजर के हलवे का आनंद लिया।
दोस्ती का असली मतलब
एम. के. भाटिया और डॉ. सोहराब की यह दोस्ती उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो सच्चे रिश्तों की अहमियत को समझते हैं। यह साबित करता है कि सच्ची दोस्ती केवल शब्दों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह हर परिस्थिति में निभाई जाती है, आज के दौर में जहाँ रिश्ते अक्सर स्वार्थ पर टिके होते हैं, वहाँ इन दोनों मित्रों की कहानी सच्चे, निस्वार्थ और अटूट बंधन की मिसाल पेश करती है।
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